उत्तराखंड
Uttarakhand में तैनात ये वरिष्ठ IFS अधिकारी फिर चर्चाओं में, जानें क्या है पूरा मामला
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के दो न्यायाधीशों ने खुद को आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले से अलग कर लिया है. संजीव चतुर्वेदी के मामले में अब तक 13 न्यायाधीश खुद को न्यायिक रूप से अलग कर चुके हैं. दरअसल संजीव चतुर्वेदी ने अपनी प्रति नियुक्ति और मूल्यांकन रिपोर्ट से जुड़े मामले में कोर्ट की शरण ली है. उधर न्यायिक रूप से अलग होने के मामले में जानकार इसे एक तरह का रिकॉर्ड भी मान रहे हैं.
उत्तराखंड में तैनात भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी एक बार फिर चर्चाओं में है. इस बार उनको लेकर यह चर्चा केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में चल रहे उनके मामले को लेकर हो रही है. दरअसल हाल ही में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के दो न्यायाधीशों ने खुद को संजीव चतुर्वेदी के मामले से अलग किया है.
जिसके बाद उनके मामलों में न्यायिक रूप से अलग होने वालों की संख्या 13 हो गई है. खास बात यह है कि कानूनी जानकारी इसे भी एक तरह का रिकॉर्ड मान रहे हैं. खुद आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने न्यायाधीशों के मामले से अलग होने की बात की पुष्टि की है.
बड़ी बात यह है कि आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले से अलग होने की ये स्थिति किसी एक कोर्ट की नहीं है. बल्कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट और दिल्ली, इलाहाबाद बेंच तक में भी ये स्थिति बन चुकी है.
संजीव चतुर्वेदी के वकील के अनुसार, वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि अधिकारी के सेवा मामलों की सुनवाई विशेष रूप से नैनीताल सर्किट बेंच में की जाए। इस फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। सुदर्शन गोयल ने कहा कि वर्ष 2021 में हाईकोर्ट ने अपना रुख दोहराया, लेकिन केंद्र ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने मामले को बड़ी बेंच को सौंप दिया।
जजों के केस से बार-बार अलग होने का सिलसिला नवंबर 2013 से शुरू हुआ, जब तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रंजन गोगोई ने चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। याचिका में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अन्य वरिष्ठ राजनेताओं एवं नौकरशाहों से जुड़े कथित भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के मामलों की सीबीआई जांच की मांग की गई थी।
अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यूयू ललित ने भी इसी मामले से खुद को अलग कर लिया था। इसी तरह अप्रैल 2018 में शिमला के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) की एक ट्रायल कोर्ट ने वरिष्ठ IAS अधिकारी विनीत चौधरी की ओर से संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ दायर मानहानि के मामले से खुद को अलग कर लिया।
मार्च 2019 में तत्कालीन कैट दिल्ली के अध्यक्ष जस्टिस एल. नरसिम्हन रेड्डी ने ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम’ का हवाला देते हुए संजीव चतुर्वेदी की स्थानांतरण याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। फरवरी 2021 में कैट दिल्ली के जस्टिस आरएन सिंह ने भी संयुक्त सचिव के पद पर केंद्र सरकार में निजी पेशेवरों के लैटरल एंट्री के खिलाफ संजीव चतुर्वेदी की याचिका से खुद को अलग कर लिया।
वर्ष 2023 में भी यह सिलसिला जारी रह। उत्तराखंड हाई कोर्ट की एक पीठ ने मई में बिना किसी कारण का उल्लेख किए खुद को उनकी याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद कैट की नैनीताल पीठ, जिसमें जस्टिस मनीष गर्ग और जस्टिस छबीलेंद्र राउल शामिल थे, ने नवंबर में कहा कि आवेदक (संजीव चतुर्वेदी) से संबंधित मामलों की सुनवाई करने में उनकी कोई व्यक्तिगत रुचि नहीं है।
जनवरी 2024 में कैट जज जस्टिस राजीव जोशी ने भी 2002 कैडर के आईएफएस अधिकारी से जुड़े एक सेवा-संबंधी मामले से अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद उसी वर्ष कैट जज एएस खाती ने भी मामले से अपना नाम वापस ले लिया।
चर्चित रहे हैं संजीव चतुर्वेदी
आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी काफी चर्चित रहे हैं। पहली बार 2007 से 2012 के बीच हरियाणा वन विभाग में कई घोटालों को उजागर करने के बाद वे सुर्खियों में आए थे। नतीजतन, उन्हें बार-बार ट्रांसफर का सामना करना पड़ा। पांच वर्षों में 12 बार उनका तबादला हुआ। बाद में उन्हें निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ चार्जशीट किया गया।
संजीव चतुर्वेदी ने इसके खिलाफ राष्ट्रपति के पास शिकायत दर्ज कराई। राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के बाद हरियाणा सरकार को निलंबन आदेश को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 2012 में उन्हें ‘व्हिसलब्लोअर’ नाम दिया गया, बाद में उन्हें भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला।
स्रोत im
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