जन मुद्दे
(अजब-गजब) राज्य सरकार ने सरकारी बिल्डिंग बनाने के लिए हिंदू मंदिरों से 1-1 करोड़ रुपए दान देने का आदेश किया जारी, मचा बवाल
तेलंगाना के वारंगल में राज्य सरकार के बंदोबस्त विभाग (Endowment Department) ने एक चौकाने वाला आदेश जारी किया है और इस आदेश से हंगामा मच गया।
दरअसल, अपने कार्यालय के तीन मंजिला निर्माण के लिए बंदोबस्त विभाग के अतिरिक्त आयुक्त ई श्रीनिवास राव (E Srinivas Rao) ने तीन मंदिरों को एक-एक करोड़ रुपए का योगदान देने को कहा है। सामने आने वाली एक रिपोर्ट में यह बताया गया है। खबर है कि इस आदेश में वारंगल में भद्रकाली मंदिर, काजीपेट टाउन के मदिकोंडा गाँव में श्री सीतारामचंद्र स्वामी मंदिर और मुलुगु जिले के मेदारम गाँव के सम्मक्का-सरलम्मा जतारा आयोजकों का उल्लेख किया गया है। जी हाँ और तीनों संस्थाओं को बंदोबस्त विभाग के उपायुक्त के नाम से एक ज्वॉइन्ट बैंक अकाउंट खोलने और उसमें राशि जमा करने के लिए कहा गया है। इसी के साथ ही प्रत्येक मंदिर से एक करोड़ का योगदान करने को कहा गया है।
सरकारी बिल्डिंग बनाने के लिए 1-1 करोड़ क्यों दें हिन्दू मंदिर- जी दरअसल भद्रकाली सेवा समिति के आयोजकों (Bhadrakali Seva Samithi Organizers) बी सुनील और बी वीरन्ना ने बंदोबस्त विभाग के फैसले का कड़ा विरोध किया। इसी तरह मेट्टू गुट्टा विकास समिति के सदस्यों ने भी राज्य सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई। केवल यही नहीं बल्कि जनजातीय नेताओं ने वारंगल में बंदोबस्ती कार्यालय की तीन मंजिलों के निर्माण के लिए मंदिर के फंड से राशि माँगे जाने को गलत ठहराया है। इसके अलावा जनता का भी यही सवाल है कि सरकारी बिल्डिंग बनाने के लिए 1-1 करोड़ क्यों दें हिन्दू मंदिर ?
अब अगर भद्रकाली मंदिर के बारे में बात करें तो पिछली शताब्दियों में बहुत लूटपाट और क्षति का सामना करने के बाद, मंदिर को साल 1950 के दशक में एक उत्साही भक्त और कुछ परोपकारी संपन्न व्यापारियों द्वारा बहाल किया गया था। बता दें कि 1950 में, गुजराती बिजनेस मैन श्री मगनलाल के साथ देवी उपासक श्री गणेश राव शास्त्री द्वारा भद्रकाली मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था।
आपको यह भी बता दें कि वारंगल के भद्रकाली मंदिर को दक्षिण भारत के स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। दूसरी तरफ मंदिर की चालुक्य शैली की वास्तुकला भी प्रशंसनीय है। जी हाँ और मंदिर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय एक सुनहरा रंग धारण करता है, इसलिए, इसे ‘दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर’ भी कहा जाता है।
स्रोत इंटरनेट मीडिया