उत्तराखंड
धर्मांतरण पर इन राज्यों में है सख्त कानून, देखें ये खास रिपोर्ट:-
किसी व्यक्ति द्वारा अपने धर्म को छोड़कर किसी नए धर्म को अपनाना धर्मांतरण कहलाता हैं।
यह स्वेच्छा और जबरन दोनों तरीकों से हो सकता हैं। भारतीय कानून के मुताबिक अपनी स्वेच्छा से धर्मांतरण कोई अपराध नहीं है, लेकिन जबरन, धोखे से अथवा लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना कई राज्यों में आपराधिक श्रेणी में आता है।
धर्मांतरण पर क्या कहता है कानून?
आजादी के पहले अंग्रेजों ने धर्मांतरण को लेकर कोई कानून नहीं बनाया था लेकिन कुछ रियासतों ने इस पर नियम-कानून बनाए थे। जिसमें रायगढ़ स्टेट कन्वर्सन एक्ट (1936), पटना फ्रीडम ऑफ रीलिजन एक्ट (1942), उदयपुर स्टेट एंटी कन्वर्जन एक्ट जैसे कुछ कानून शामिल हैं।
आजादी के बाद, धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित करने के लिए कई बार संसद में बहस हुई, लेकिन कोई एकमत राय नहीं बनी और न कभी कोई बिल पास हो पाया। अगर सीधा समझा जाए तो केंद्रीय स्तर पर फिलहाल कोई ऐसा कानून नहीं है, जिससे जबरन और लालच देकर हो रहे धर्मांतरण पर नकेल कसी जा सके। हालाँकि, पिछले कुछ सालों में कई राज्यों ने अपने यहां जबरदस्ती, फ्रॉड अथवा लालच देकर किए जाने धर्मांतरण रोक लगाने के लिए कानून बनाए हैं।
भारत के संविधान में धर्मान्तरण को लेकर कोई स्पष्ट अनुच्छेद नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 25 में बताया गया है कि स्वेच्छा से भारत के हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और धर्म का प्रचार-प्रसार करने की आजादी है। हालाँकि, धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मान्तरण में अंतर है इसलिए संविधान के यह प्रावधान यहाँ लागू नहीं होते हैं।
किन राज्यों में है धर्मांतरण पर कानून
उत्तर प्रदेश – 27 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून लागू किया गया था। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अपराध की गंभीरता के आधार पर 10 साल तक की जेल हो सकती है। साथ ही 15 से 50 हजार रुपये तक का जुर्माने का प्रावधान भी है। इतना ही नहीं अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को शादी से दो महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तावित शादी के बारे में सूचना देनी आवश्यक है।
वहीं इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर भी तीन से 10 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि जबरन सामूहिक धर्मांतरण के लिए तीन से 10 साल की जेल और 50 हजार का जुर्माना। इस कानून के मुताबिक अगर विवाह का एकमात्र उद्देश्य महिला का धर्म परिवर्तन कराना सिद्ध हुआ तो ऐसी शादियों को अवैध करार दिया जाएगा।
उत्तराखंड – जबरन धर्मांतरण कराने वालों को उत्तराखंड में अब और सख्त सजा दी जाएगी। इसके लिए 2018 के कानून को और सख्त कर दिया गया है। अब इस नए कानून के तहत, जबरन धर्मांतरण कराने वाले दोषी को 10 साल की जेल और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा होगी। साथ ही पीड़ित को भी मुआवजा देना होगा।
उड़ीसा – देश में सबसे पहले धर्मांतरण पर उड़ीसा राज्य में ही कानून बनाया गया था। धर्मांतरण कानून साल 1967 में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम लागू किया गया। इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपए तक का जुर्माना तय किया गया था। वहीं इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा।
मध्य प्रदेश – साल 1968 में धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने वाला उड़ीसा के बाद यह देश का दूसरा राज्य बना। यहां कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपए तक का जुर्माना तय किया गया था। वहीं इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा।
इस कानून में संशोधन भी किया गया है। दरअसल, साल 2020 के दिसंबर में शिवराज सिंह कैबिनेट ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक में शादी या धोखाधड़ी से कराया गया धर्मांतरण अपराध माना जाएगा, जिसके लिए अधिकतम 10 वर्ष की कैद और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ – मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीगढ़ ने मध्यप्रदेश में बने कानून को ही अपनाया। साल 2006 में इसे संशोधित भी किया और धर्मांतरण से पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने की अनिवार्यता की गई।
अरूणाचल प्रदेश – साल 1978 में स्थानीय जनजातियों को प्रलोभन देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए यह कानून बनाया है। इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा।
गुजरात – साल 2003 में गुजरात पहला राज्य बना था, जिसने धर्म परिवर्तन को कानूनी मान्यता देने के लिए धर्मांतरण से पहले जिला प्रशासन की मंजूरी अनिवार्य की थी। वहीं इस कानून में अप्रैल 2021 में संशोधन किए गए थे। जिसे गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन (अमेंडमेंट) एक्ट 2021 नाम दिया गया था। यह कानून 15 जून 2021 से लागू हुआ।
इसके तहत किसी दूसरे धर्म की लड़की को बहला-फुसलाकर, धोखा देकर या लालच देकर शादी करने के बाद उसका धर्म परिवर्तन करवाने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर लड़की नाबालिग है तो 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
हिमाचल प्रदेश – साल 2006 में हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून बना, जिसका साल 2019 में संशोधन किया गया। जिसके तहत बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से या शादी से और उससे जुड़े मामलों के लिये एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है।
वहीं साल 2022 के अगस्त में ‘द फ्रीडम ऑफ रिलिजन (संशोधित)’ बिल पारित किया गया। जिसमें सजा को और भी सख्त कर दिया गया। हिमाचल में अब सामूहिक धर्मांतरण पर 10 साल की जेल और 2 लाख रुपये का जुर्माने का प्रावधान है।
झारखंड – साल 2017 में झारखंड में धर्मांतरण विरोधी कानून बना। इसके तहत जबरन धर्मांतरण को गैरकानूनी बताया गया है। साथ ही 3 साल तक की जेल या 50 हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों से दंडनीय किया जा सकता है। वहीं अपराध नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के प्रति किया गया है तो जेल की सजा 4 साल और जुर्माना एक लाख रुपये तक होगा।
कर्नाटक – 30 सितंबर 2022 को अधिसूचित किए गए कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम-2022 को लागू किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, लुभाने या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी करके किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा। अगर ऐसा होता है तो उसे अपराध माना जाएगा।
इस कानून का उल्लंघन करने वालों को तीन से पांच साल की जेल और 25,000 रुपये तक का जुर्माना। जबकि नाबालिग, महिलाओं और एससी और एसटी समुदायों के व्यक्तियों का धर्म परिवर्तित कराने वाले लोगों को तीन से 10 साल की जेल की सजा और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा का नियम है।
सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण पर दिया था ये बयान
साल 2020 के फरवरी महीने में दक्षिण के कई राज्यों में धर्मांतरण के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में अपील की गई थी कि कोर्ट धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने के लिए कहे। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि कानून बनाना संसद का काम है, कोर्ट का नहीं।
वहीं बीते कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने धर्मांतरण पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह धर्मांतरण के खिलाफ नहीं है बल्कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ है। पीठ ने केंद्र और राज्यों से जबरन धर्मांतरण को लेकर पूरा विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा है।
स्रोत इंटरनेट मीडिया