उत्तर प्रदेश
जेल में बंद था आरोपित फिर भी दर्ज हो गया SC/ST एक्ट का मुकदमा, अब झूठा केस करने पर जज ने……..
लखनऊ। एससी-एसटी एक्ट कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में मनुस्मृति के श्लोकों का उद्धरण देते हुए न्यायिक विवेक के विस्तृत फलक की ओर ध्यान आकृष्ट किया। मामला झूठा मुकदमा दर्ज कराने से संबंधित था।
विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने दोषी को सात वर्ष के कठोर कारावास दंड की सजा सुनाते हुए मनुस्मृति के श्लोक यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च। हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः का उल्लेख किया।
ऐसे समय में जब मनु स्मृति को लेकर समाज में तीव्र विवाद है, विशेष न्यायाधीश द्वारा इस प्राचीन ग्रंथ के श्लोकों को उद्धृत करते हुए सजा सुनाना एक महत्वपूर्ण उदाहरण माना जा रहा है।
वादी सहदेव का विपक्षी सत्यनारायण से जमीन का विवाद चल रहा था। सहदेव ने सत्यनारायण व उसके पुत्र के विरुद्ध 12 अप्रैल 2024 को थाना गाजीपुर में एससी/एसटी एक्ट की धाराओं सहित लूट का मुकदमा दर्ज कराया था।
जांच में पता चला कि घटना वाले दिन आरोपित जिला जेल में बंद था। विशेष न्यायाधीश ने सहदेव के विरुद्ध झूठा मुकदमा दर्ज कराने पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही प्रारंभ की।
जांच में पता चला कि सहदेव अनुसूचित जाति का है और उसने पहले भी कई लोगों के खिलाफ लगभग 10 मुकदमे दर्ज कराए हैं। उन सभी में फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई है।
न्यायाधीश ने अपने निर्णय में मनुस्मृति के उपरोक्त श्लोक का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा, जिस सभा में बैठे हुए सभासदों के सामने अधर्म से धर्म और झूठ से सत्य का हनन होता है उस सभा में सब सभासद मृतक के समान हैं।
न्यायाधीश ने दो अन्य श्लोकों का भी संदर्भ दिया जिनके अनुसार जो अभियोगी (वादी) अपने अभियोग के विषय में कुछ न बोले, वह दंड के योग्य होता है
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