उत्तराखंड
प्रदूषण खाए यहां का रोजगार पाए वहां का, वाह रे सेंचुरी पेपर मिल तेरे सितम……
लालकुआं।
रिपोर्ट:- शैलेन्द्र कुमार सिंह।
कहने को तो लालकुआं कस्बे में स्थित सेंचुरी पल्प एंड पेपर मिल हजारों लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है मगर उत्तराखंड के मूल निवासियों के लिए जब यहां रोजगार की बात आती है तो सिर्फ सियासत गरमाती है मगर रोजगार के नाम पर कुछ हासिल नहीं हो पाता। यह बात किसी से छुपी भी नहीं है कि उत्तराखंड का युवा नोएडा और दिल्ली की सड़कों पर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने और आमदनी जुटाने के लिए दौड़ने को मजबूर है मगर उनके अपने ही प्रदेश में स्थापित ऐसे बड़े औद्योगिक घराने स्थानीय युवाओं को रोजगार देने के नाम पर सिर्फ छलावा करते नजर आते हैं। सेंचुरी पल्प एंड पेपर मिल की बात करें तो यहां बाहरी राज्यों से आए कामगारों की बहुतायत है जबकि उत्तराखंड के मूल निवासी नाम मात्र के तौर पर यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पूरे मामले में दूसरा पहलू यह भी है कि प्रदूषण खाए यहां का और रोजगार पाए बाहर का यह कहावत इसलिए सिद्ध होती है क्योंकि सेंचुरी पेपर मिल ने अपने प्रदूषण फैलाने वाले प्लांट लालकुआं नगर पंचायत के वार्ड नंबर 4 एवं 5 के पास बनाए हैं इसके अलावा नगर पंचायत से बाहर के क्षेत्र की आबादी भी पहले से ही इन प्लांटों के आस पास रहती है जो भयंकर प्रदूषण का शिकार होते हैं जबकि मिल के आवासीय परिसरों की बात करें तो 25 एकड़ वर्कर कॉलोनी यहां से काफी दूरी पर स्थित है जो प्रदूषण के दायरे से लगभग बाहर है वहीं स्टाफ कॉलोनी की बात करें तो ये भी प्रदूषण फैलाने वाले प्लांटों से काफी दूर एवं हरे भरे वातावरण से घिरी हुई है मगर नगर पंचायत के कई वार्ड भयंकर प्रदूषण की मार झेलते हैं कई बार आंदोलन होने के बाद भी इस बड़े प्रतिष्ठान पर कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाती। कुछ समय पूर्व की बात करें तो उप जिलाधिकारी मनीष कुमार सिंह ने भी प्रदूषण सहित कई अन्य मामलों में नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा था मगर वह मामला भी समय के साथ साथ पाताल में चला गया। ऐसे में यह बात तो सिद्ध होती है कि प्रदूषण झेले यहां का और रोजगार पाए बाहर का। ऐसा नहीं है कि इन मुद्दों पर कभी कोई आंदोलन नहीं हुए, लंबे संघर्षों के बाद भी यहां के निवासियों को उचित रोजगार नहीं मिल पाया है निकटवर्ती क्षेत्र बिंदुखत्ता की बात करें तो यहां से भी तमाम आंदोलनकारियों ने अपनी आवाज उठाई मगर इस बड़ी मिल के आगे किसी की नहीं चल पाई। प्रदूषण की जब-जब बात आती है तब-तब यह कह दिया जाता है कि सब कुछ दिल्ली से ऑटोमेटिक कंट्रोल होता है और प्रदूषण ना के बराबर होता है, जबकि धरातल पर विपरीत हालात मौका मुआयना करने के बाद ही पता चलते हैं कि कैसे लोग यहां अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
इधर प्रदूषण एवं स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाने के मुद्दे पर समाजसेवी एवं व्यापारी नेता जितेंद्र पाल सिंह का कहना है कि सेंचुरी पेपर मिल में स्थानीय लोगों को 70% रोजगार दिया जाना चाहिए, इसके अलावा भयंकर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण पर मिल प्रबंधन को तत्काल लगाम लगानी चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं होने पर लोगों के जीवन पर सेंचुरी पेपर मिल विपरीत प्रभाव डाल रही है।
वही उत्तराखंड बेरोजगार संगठन के कुमाऊं प्रवक्ता इमरान खान ने कहा है कि यदि स्थानीय लोगों को 70% रोजगार और प्रदूषण कम करने के मामले पर मिल प्रबंधन जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाता है तो बेरोजगार संगठन स्थानीय लोगों के साथ उग्र आंदोलन को भी बाध्य होगा।