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जन मुद्दे

हिन्दुओं की महक से पहचान कर मौत के घाट उतारने वाला बिट्टा कराटे, जिसे कहा जाता था कश्मीरी पंडितों का कसाई, जानिए अब कहां है?

पाकिस्तान के फरमान के सबसे बड़े अनुपालनकर्ताओं में से एक फारूक अहमद डार जिसे बिट्टा कराटे के नाम से भी जाना जाता है। वह कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याओं का नेतृत्व करने वाले संगठन जेकेएलएफ का मुखिया है। एक इंटरव्यू में कराटे ने 1990 में 20 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या करने की बात स्वीकार की थी।

द कश्मीर फाइल्स ऐसे जख्म की कहानी है जो पर्दे पर हर किसी को दिखाने की कोशिश की जा रही है। फिल्म ने 1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को फिर से सार्वजनिक बहस में ला दिया है। कश्मीरी पंडितों को पाकिस्तान या उसके प्रायोजित संगठनों के आदेश पर आतंकवादियों द्वारा हिंदू होने के कारण मार दिया गया था। उन्हें “रालिव, गैलिव या चालिव” (कन्वर्ट, डाई या लीव) के बीच चयन करने के लिए कहा गया था। करोड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग कश्मीर घाटी से भाग गए। कश्मीर फाइल्स के हर के सीन, एक-एक शॉट, एक-एक डॉयलाग लोगों के जेहन में हैं और इन्हीं डायलाग या फिर कहे एक इंटरव्यू दिखाने की कोशिश की गई है बिट्टा कराटे की। द कश्मीर फाइल्स की वजह से आज बिट्टा कराटे का नाम एक बार फिर से चर्चा में आया है। आखिर कौन है ये बिट्टा कराटे, कहां है ये।

पंडितों का कसाई

पाकिस्तान के फरमान के सबसे बड़े अनुपालनकर्ताओं में से एक फारूक अहमद डार जिसे बिट्टा कराटे के नाम से भी जाना जाता है। वह कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याओं का नेतृत्व करने वाले संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) का मुखिया है। 1991 के एक इंटरव्यू में बिट्टा कराटे ने 1990 में 20 से अधिक कश्मीरी पंडितों या “शायद 30-40 से अधिक” की हत्या करने की बात स्वीकार की थी। एक समय में बिट्टा कराटे घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए खूंखार नाम बन गया था और उसे “पंडितों का कसाई” कहा जाता था।


ऐसे हुई शुरुआत

साल 1989 में जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी तो कश्मीरी लोगों में विश्वास जगाने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद को देश का पहला मुस्लिम गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन इसके पांच दिनों के भीतर ही रूबिया सईद का अपहरण हो गया। रूबिया सईद को छुड़वाने के लिए आतंकवादियों की रिहाई की गई। जिससे आतंकवादियों को हौसले बढ़ गए। उस वक्त आतंकवादियों को लगा कि सरकार तो आसानी से झुक सकती है। इसके बाद घाटी के हालात दिनों दिन और खराब होते चले गए। कहा जाता है कि कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और आईएसएल ने केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या आदि का आंकलन किया गया। जिसके बाद से घटनाएं बढ़ने लगी। 14 मार्च 1989 को एक ब्लास्ट में सात लोगों की मौत हो गई। घायल में से एक महिला को अस्पताल में ले जाया गया लेकिन जैसे ही उनकी पहचान कलावती के रूप में हुई तो उनका इलाज नहीं किया गया और वो ज्यादा खून निकलने की वजह से मर गईं। इसके बाद 14 सिंतबर को हिंदू नेता टीका लाल टपलू की हत्या हो गई। धीरे-धीरे कश्मीरी पंडितों के प्रति जुल्म नरसंहार में तब्दिल होने लगा और इसका नेतृत्व जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का मुख्य चेहरा रहे बिट्टा कराटे ने किया।

पाक के मुज्जफराबाद में ली ट्रेनिंग

बिट्टा कराटे का असली नाम फारुख अहमद डार है। कराटे में ब्लैक बेल्ट होने के कारण उसका नाम बिट्टा कराटे रखा गया। 1988 में जेकेएलएफ के कमांडक अश्फाक अहमद मजीद बिट्टा कराटे को पाक अधिकृत कश्मीर ले गया था। यहां बिट्टा कराटे को 32 दिन का आतंकी प्रशिक्षण दिया गया। जिसके बाद उसे भारत के जम्मू और कश्मीर में भेज दिया गया। वापस आने के बाद बिट्टा ने कश्मीरी पंडितों की जानकारी एकट्ठा करना शुरू कर दिया। जेकेएलएफ का ये हत्यारा पिस्तौल लेकर श्रीनगर में घूमता और पंडितों की बट्ट-ए-मुश्क यानी महक को खोजता था ताकी उन्हें ढूंढकर मार सके।
आरएसएस से जुड़े व्यक्ति को सबसे पहले बनाया निशाना

एक टीवी इंटरव्यू में जब उससे पूछा गया कि सबसे पहला व्यक्ति जिसे मारा गया वो कौन था? बिट्टा ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया सतीश कुमार टिक्कू। उसने कहा कि पंडित था वो मैंने उसे इसलिए मारा क्योंकि वो आरएसएस से जुड़ा हुआ था। ऊपर से मारने का ऑर्डर भी मुझे मिला था। इस इंटरव्यू के दौरान ही बिट्टा ने कहा था कि मुझे मारने का ऑर्डर ऊपर से मिलता था। इसके साथ ही उसने बताया था कि वो कश्मीरी पंडितों की हत्या पिस्टल से किया करता था। एके 47 के इस्तेमाल को लेकर पूछे जाने पर कहा था कि इससे वो जवानों पर फायरिंग करता था। उसने टीवी इंटरव्यू में ये बात बड़े शान से बताई थी कि एके 47 से हम सिक्योरिटी वालों पर फायरिंग करते थे। इसके साथ ही उसने ये भी बताया था कि वो अकेले ही ह्त्याएं करता था वो भी बिना नकाब के।

निर्दोष लोगों को क्यों मारा?
बेगुनाह लोगों को मारने का जरा सा भी इल्म बिट्टा कराटे में नहीं नजर आया था। बल्कि उसने कहा था कि “मैंने निर्दोष लोगों को नहीं मारा। मैंने बस ऊपर से आए आदेशों का पालन किया। बिट्टा कराटे ने कहा कि जेकेएलएफ के शीर्ष कमांडर अशफाक मजीद वानी ने यह आदेश दिया। वानी वह शख्स था जो बिट्टा कराटे और अन्य को आतंकी प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान ले गया था। बाद में वह एक मुठभेड़ में मारा गया।

मां और भाई को भी मार देता

बिट्टा ने कहा था कि उस समय, हमने सोचा था कि हम कश्मीर को भारत से छीन लेंगे। बिट्टा कराटे ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटर्व्यू में बताया था कि मैंने पंडित लड़के सतीश कुमार टिक्कू को मारा वो मेरा पहला मर्डर था। मुझे ऊपर से ऑर्डर मिले थे। यही हमें सिखाया गया था। मैंने अपनी मर्जी से कभी किसी को नहीं मारा। मुझे अशफाक मजीद वानी से आदेश मिला कि वह मुझे मारने के लिए जो भी कहेगा, उसे मार डालूंगा। अगर उसने मुझे मेरे भाई या मेरी मां को मारने का आदेश दिया होता, तो मैं उन्हें भी मार डालता।

जज ने की थी अहम टिप्पणी

बिट्टा कराटे को 1990 में गिरफ्तार किया गया थाष वो 2006 तक यानी 16 वर्षों तक जेल में रहा। साल 2006 में उसे जमानत मिलने के दौरान टाडा कोर्ट के जज एनडी वानी ने कहा था कि अदालत इस तथ्य से अवगत है कि आरोपियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं जिसमें मौत या फिर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है लेकिन एक तथ्य ये भी है कि अभियोजन पक्ष ने मामले में सही तरीके से अपना पक्ष नहीं रखा।

रिहा होने पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाकर हुआ था स्वागत
आईएएस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिट्टा कराटे को पिछले18 सालों से देश की कई जेलों में रखा गया है। कश्मीर घाटी की जेल में रहने के दौरान उसने एक कैदी की सिर कुचलकर हत्या कर दी थी। आगरा जेल में बिट्टा कराटे ने 14 दिन की भूख हड़ताल की थी। बिट्टा कराटे को पुलिस ने पब्लिक सेफ्टी एक्‍ट के तहत गिरफ्तार किया था। 2006 में जम्‍मू की टाडा कोर्ट से जमानत पर रिहा हो गया था। सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत उनकी नजरबंदी को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उसकी रिहाई हुई। रिहा होने पर कश्मीर घाटी में उनका जोरदार स्वागत हुआ। जेकेएलएफ के एक धड़े ने एक जुलूस का नेतृत्व किया जिसमें उन पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाई गईं।

पुलवामा हमले के बाद एनआईए ने कसा शिकंजा

जेल से छूटने के बाद बिट्टा जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलफ) में शामिल हुआ। पुलवामा हमले के बाद बिट्टा को आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत कार्रवाई करते हुए टेरर फंडिंग के आरोप में 2019 में एनआईए (एनआईए) ने गिरफ्तार किया था। यासीन मलिक और बिट्टा कराटे के बीच बाद में विवाद हो गया था। इसके बाद जेकएलएफ दो भाग जेएकएलएफ और जेकएलएफ (रियल) में बंट गया था। जेकेएलएफ का नेता यासिन मलिक तो जेकएलएफ रियल का नेता बिट्टा कराटे है। फिलहाल ये दोनों ही दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं।

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