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उत्तराखंड

(जरूरी खबर) अब इन 3 सियासी परीक्षाओं में खुद को साबित करेंगे सीएम धामी……

अपनी विधानसभा सीट खटीमा से चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) को आखिरकार भाजपा को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लेना पड़ा। विधानसभा चुनाव की सफलता के बाद पार्टी अब आगामी सियासी परीक्षाओं में पास होने की तैयारी में जुट गई है। यह सियासी परीक्षाएं लोकसभा और निकाय चुनाव अगले ढ़ाई साल में ही होनी हैं। इस कारण पार्टी के लिए यह ढाई साल बहुत अहम रहने वाले हैं। अगले ढाई सालों में धामी को भी खुद को साबित करना होगा।

प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद चुनाव भले हार गए, लेकिन छह माह के कार्यकाल में उन्होंने सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाकर राजनीतिक कौशल का परिचय दिया उससे पार्टी आलाकमान बहुत खुश है। यही वजह रही कि भाजपा के करीब आधा दर्जन से अधिक विधायकों ने चुनाव हारने वाले धामी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर डाली। यहां तक की इन विधायकों ने अपनी सीट से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव तक दे दिया।

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विधायकों की मांग से पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को यह संकेत चला गया कि धामी को अगर पांच साल और दे दिए जाएं तो कहीं बेहतर पारी खेल सकते हैं। क्योंकि सरकार वापसी की खुशी से ज्यादा अब भाजपा की बड़ी चिंता लोकसभा और निकाय चुनाव में बिना किसी संशय के जीत हासिल करना है। इसीलिए आलाकमान ने मंत्रिमंडल का गठन बहुत सोचसमझकर किया है। भाजपा का सारा फोकस अब संतुलित और मजबूत मंत्रिमंडल बनाने को लेकर है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेश में राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ मुख्यमंत्री का चेहरा खुद में इतना मजबूत होना चाहिए ताकि राष्ट्रीय नेतृत्व पर ज्यादा निर्भरता न हो। इस बीच धामी के सामने तीन चुनौती है।

  1. खटीमा सीट से चुनाव हारने के बाद भी राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए पुष्कर सिंह धामी को फिर छह महीने के भीतर विधायक बनने की परीक्षा देनी होगी। वह किस सीट से विधायक बनेंगे यह तो पार्टी आलाकमान तय करेगा, फिलहाल मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी की नई विधानसभा सीट कौन सी होगी? इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है पार्टी पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट की तलाश में जुट गई है। चर्चा यह है कि धामी के लिए किसी विपक्षी दल के विधायक की सीट को खाली कराया जाएगा। वह सीट भी ऐसी हो जहां पुष्कर सिंह धामी की जीत आसानी से हो सके।
  2. 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। रणनीति के मुताबिक पार्टी सबसे ज्यादा जोर वहां लगाएगी जहां उसकी सरकार नहीं है या फिर कमजोर बेल्ट है। रणनीतिकार चाहते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय नेताओं को उन राज्यों में तो ज्यादा मेहनत न करनी पड़े जहां भाजपा की सरकारें हैं।
  3. तीसरा यह कि निकाय चुनाव स्थानीय लीडरशिप के दम पर जीता जा सकें। इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखकर पार्टी सरकार गठन में बहुत फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। मुख्यमंत्री के चेहरे से लेकर मंत्रिमंडल का हर सदस्य जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीयता के लिहाज से मजबूत हो। जिससे दोनों सियासी परीक्षाओं को पास करने में कहीं कोई कठिनाई न उठानी पड़े। इसीलिए पार्टी सरकार गठन में लोकल लीडरशिप का चौतरफा मंथन करके चयन कर रही है।
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कांग्रेस के बढ़े मत प्रतिशत को लेकर अलर्ट

भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव जीत तो लिया, लेकिन उसकी चिंता विपक्षी दल कांग्रेस के बढ़ मत प्रतिशत को लेकर है। पार्टी इस बात पर मंथन कर रही है कि सरकार के स्तर पर कहां क्या कमी रह गई, जिसके चलते कांग्रेस के मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके अलावा वो बूथ कौन से हैं, जहां भाजपा को पिछली बार सफलता मिली और इस वार वहां कांग्रेस को पसंद किया गया। इन सभी कारणों का समाधान भी भाजपा वर्ष 2024 से पहले चाहती है ताकि लोकसभा और निकाय चुनाव में भाजपा को होने वाले किसी प्रकार के नुकसान से बचाया जा सके।  

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