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उत्तराखंड

बिन्दुखत्ता। आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे बिंदुखत्ता वासी, पार्ट 2

भले ही भारत देश को अंग्रेजो की गुलामी से स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हो मगर बिंदुखत्ता वासी आज भी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं जिसकी असल वजह बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाए जाने का सपना आज भी अधर में लटका होना है। दरअसल आजादी के बाद देश लगातार तरक्की की सीढ़ियों को चढ़ता गया और देश के विकास में तमाम सरकारों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया मगर बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाएं जाने का मामला आज भी एक मुद्दा ही बनकर रह गया है। राजस्व गांव नहीं बनने की वजह से आज भी केंद्र एवं राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से यहां के लोग वंचित हैं। सैकड़ों और हजारों आंदोलनों के बाद भी हालात जस के तस हैं। विधानसभा या लोकसभा चुनाव के समय यह मुद्दा सुर्खियों में रहता है मगर चुनाव बीत जाने के बाद सत्ता के चुने हुए जनप्रतिनिधि इस मुद्दे को मानो भूल ही जाते हैं। ऐसा एक बार नहीं बल्कि बार-बार हुआ है। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, मगर राजस्व गांव बनाने के मामले में आज तक किसी ने ठोस पैरवी तक नहीं की, यदि जनप्रतिनिधि और नेता इस मुद्दे को नहीं सुलझा सकते तो स्पष्ट करें ताकि ग्रामीण अपने हक की लड़ाई कानूनी स्तर पर खुद लड़ कर अपना हक हासिल कर सकें, क्योंकि आजादी भी अंग्रेजो के खिलाफ लड़कर ही देशवासियों को मिली थी। ऐसे में बिंदुखत्ता वासी अपने आप में इतना सक्षम जरूर हैं कि वह अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं मगर चंद जनप्रतिनिधि और नेता खुद को बिंदुखत्ता का हितैषी बताते हैं और यहां की जनता इसी में उलझ कर रह जाती है और हाथ कुछ नहीं लगता। अब तक कई नागरिक बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाए जाने का सपना देखते-देखते दुनिया को अलविदा कह चुके हैं बावजूद इसके इस मामले पर किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। सरकार चाहे तो इस मुद्दे का पटाक्षेप कर सकती है और यहां के बाशिंदों को उनका हक भी दिला सकती है मगर उन्हें तो सिर्फ मुद्दा बनाए रखना है ताकि जनता इसी हेर-फेर में उलझी रहे और नेता चुनावी दावे और वादे करके वोटों का गणित अपने पक्ष में कर सकें। बिंदुखत्ता के लोग विधानसभा एवं लोकसभा में अपने मताधिकार का प्रयोग तो कर सकते हैं मगर अपने गांव की सरकार चुनने का अधिकार उन्हें आज तक नहीं मिल पाया है, और इसका मलाल आज भी यहां के बाशिंदों को है। हालांकि राज्य बनने के बाद यहां सड़कें एवं विद्युतीकरण जरूर हुआ मगर राजस्व गांव नहीं बनने की वजह से आज भी केंद्र एवं राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से यहां के लोग वंचित रहते हैं। डबल इंजन की सरकार से भी लोगों को बहुत उम्मीद थी मगर हालात जस के तस बने रहे। एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और तमाम राजनीतिक दलों के नेता खुद को बिंदुखत्ता का हितैषी बता कर एक बार फिर वोटों की राजनीति करेंगे मगर बिंदुखत्ता को अंत में क्या मिलेगा यह यहां का बच्चा-बच्चा जानता है।
क्रमशः………पार्ट 3

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संपादक

शैलेन्द्र कुमार सिंह

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